क्रांतिकारी : शहीद चन्द्रशेखर आजाद
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे लोकप्रिय क्रांतिकारियों में से एक शहीद चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गाँव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था। कम उम्र में ही आजाद क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए थे और भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल सरीखे दूसरे क्रांतिकारी उन्हें पंडितजी कहकर पुकारते थे। आजाद नाम उन्होंने खुद अपने आप को दिया था। असहयोग आंदोलन के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार कर जज के सामने प्रस्तुत किया गया तब जज के पूछने पर उन्होंने पूरी दृढ़ता से अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को अपना निवास बताया. उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई और हर कोड़े के वार के साथ वो 'वन्दे मातरम्' और 'महात्मा गाँधी की जय' का नारा लगाते रहे। इस घटना के बाद से ही उनके नाम के साथ आजाद जुड़ गया और वे देशवासियों के बीच लोकप्रिय होने लगे। शहीद चन्द्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी, इस प्रकार है।
■ सन 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड से उत्पन्न हुए हालात ने बहुत सारे भारतीय नौजवानों को क्रांतिकारी बनने पर मजबूर किया। सन 1921 में जब असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, आजाद भी उस आंदोलन में कूद पड़े।
■ सन 1922 में जब महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन को बर्खास्त किया था तब आजाद सहित बहुत सारे क्रांतिकारियों का कॉंग्रेस से मोहभंग हो गया था। आजाद महज 16 साल के थे जब वो राम प्रसाद बिस्मिल और शचीन्द्रनाथ सान्याल द्वारा स्थापित क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन(एच०आर०ए) के साथ जुड़ गये।
■ सन 1925 में आजाद ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अन्य 10 एच०आर०ए क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया। 9 अगस्त 1925 को काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन' को इन क्रांतिकारियों ने चेन खींचकर रोका और ब्रिटिश सिपाहियों पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। हालांकि इस घटना से तिलमिलाई अँग्रेजी हुकूमत एच०आर०ए क्रांतिकारियों के पीछे हाथ धो के पड़ गई और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर राजद्रोह का प्रकरण चलाया गया जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल,राजेन्द्र लाहिड़ी, अशफ़ाक उल्ला खान और ठाकुर रौशन सिंह को फांसी की सजा सुनायी गयी।
■ अपने बहुत सारे क्रांतिकारी सहयोगियों के गिरफ्तार होने के बाद आजाद ने कुछ अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्हें जेल से फरार करवाने की भी कोशिश की परंतु असफल रहे। आखिरकार 8 सितंबर 1928 को उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारी संगठन को एकसाथ मिलाकर आजाद ने भगत सिंह और सुखदेव सहित अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (एच०एस०आर०ए) का गठन किया। आजाद इस नये संगठन के कमांडर-इन-चीफ और भगत सिंह प्राचार मंत्री नियुक्त किये गये।
■ साइमन कमिशन का विरोध करते हुए अँग्रेजों द्वारा जब लाला लाजपत राय की सिर पर लाठी मारने से मौत हो गई थी, तब भगत सिंह, आजाद औऱ सुखदेव सहित कुछ अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी के सिर पर लाठी मारने वाले उस ब्रिटिश ऑफिसर जॉन सॉण्डर्स को पुलिस स्टेशन से बाहर निकलते वक़्त सरेआम 6 गोली मरकर हत्या कर दी। बाद मे पोस्टर और पर्चे बांट कर इन क्रांतिकारियों ने ये बता दिया कि लालाजी की मौत का बदला ले लिया गया है।
■ जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए दो काले कानून पब्लिक सेफ्ट बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में सन 1929 में दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था तब आजाद ही इस योजना का नेतृत्व कर रहे थे। हालांकि आजाद चाहते थे कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फेंकने के बाद वहाँ से फरार हो जाये लेकिन भगत सिंह गिरफ्तार होकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में अंग्रेजों के प्रति युवाओं को एक संदेश देना चाहते थे।
■ भगत सिंह को फांसी की सजा से बचाने के लिए आजाद ने बहुत प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाए। 27 फरवरी 1931 को महज 25 साल की उम्र में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने एक क्रांतिकारी मित्र के साथ चर्चा करते हुए आजाद को ब्रिटिश सिपाहियों ने घेर लिया और अन्धाधुन गोलीबारी की। आजाद ने डटकर अकेले उनका मुकाबला किया और मुँहतोड़ जवाब देते हुए कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। जब आजाद के पास गोली खत्म होने लगी और जब सिर्फ एक गोली ही बची तब उन्होंने खुद को वो गोली मारकर शहादत को प्राप्त हुए।
जैसे ही जनता को आजाद की मौत की खबर लगी पूरा इलाहाबाद अल्फ्रेड पार्क में इकट्ठा होने लगा। आजाद की मौत की घटना से पूरा देश विचलित हो उठा था और अगले दिनों से ही कई सरकारी विभागों और अधिकारियों पर हमले होने लगे। लोग सड़क पर उतरने लगे और कई शहरों में लोगों ने जुलूस निकाल कर आजाद को श्रद्धांजलि दी। जिस बहादुरी और जिंदादिली से चन्द्रशेखर आजाद अपनी जिंदगी जीते थे इससे उनके नाम के आगे जुड़ा "आजाद" उनके व्यक्तित्व में साफ झलकता था।
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